गर्मियों की छुट्टी के बाद स्कूलों का नया सत्र शुरू हो चुका है. नई कक्षा में प्रवेश के साथ-साथ बच्चों में स्कूल जाने का उल्लास भी साफ़ देखा जा सकता है. एक ऐसा उल्लास जो हर बच्चे के चेहरे पर है. लेकिन क्या हो जब नौनिहाल आँखों में सपने लिए अपनी जान हथेली में लेकर स्कूल जाएं और किसी अप्रिय दुर्घटना का शिकार हो जाएं. सोचकर भी रूह काँप जाती है. लेकिन जिम्मेदार हैं कि उन्हें इस बात का जरा सा भी अहसास नहीं हैं.
जी हाँ जो तस्वीरें हम आपको दिखा रहे हैं वो बिलकुल सही हैं और लगभग पूरे देश में ही ऐसी तस्वीरें साफ़ देखी जा सकती हैं. नियमों की मानें तो स्कूल की वैनों में सीएनजी की साफ़ मनाही है. लेकिन परिवहन विभाग के नियमों को ताख पर रखकर नौनिहालों की जिंदगी से खुलेआम खिलवाड़ हो रहा है. एक तरफ नन्हें मासूमों की जिंदगी खतरे में डालने वाले स्कूली प्रशासन की लापरवाही साफ़ तौर पर देखी जा सकती है. जिसका एक प्रत्यक्ष प्रमाण आगरा में देखने को मिला. जहां एक स्कूली वैन LPG से चल रही है. इतना ही नहीं लापरवाही की हद तो तब पार हो गई जब ये मासूम बच्चे LPG टैंक के ऊपर ही बैठे दिखे.लापरवाही का ये कोई पहला मामला नहीं हैं. इससे पहले भी के न्यूज़ अपनी ख़ास मुहीम 'सूबा बोलेगा' के जरिये अपनी आवाज बुलंद कर चुका है.
रही बात RTO की तो वो भी कुम्भकर्णी नींद सोया हुआ है. जब कोई हादसा होता है. तब उनकी आंखें खुलती है. स्कूल की जिन वैनों में नौनिहालों को बैठाकर लाया और ले जाया जाता है. वो किसी ज्वालामुखी से कम नहीं है. योगी सरकार तो लगातार एक्शन मो़ड में दिखती है लेकिन अधिकारियों पर इसकी सख्ती नहीं दिखती है. न्यायालय की गाइड लाइन की बात करें तो किसी भी स्कूली ऑटो में पांच और वैन में 13 बच्चों से ज्यादा बैठाने पर रोक है लेकिन न्यायालय की गाइड लाइन का पालन ना के बराबर हो रहा है. यहां तक पुलिस थानों के सामने से ये ऑटो और बाकी के स्कूल वाहन फर्राटे भरते हुए निकल जाते हैं लेकिन थाने का सिपाही तक नहीं टोकता है. परिवहन विभाग स्टाफ का रोना रोता है. ऐसे में सबसे बड़ा सवाल उठता है तो सिर्फ यही की क्या साशन-प्रसाशन को किसी बड़ी दुर्घटना का इन्तजार है? आखिर क्यों नहीं खुल रही जिम्मेदारों की कुम्भकर्णी नींद?