J. Thomas: उत्तराखंड बीजेपी के सबसे बड़े चेहरे माने जाने वाले मौजूदा पौड़ी सांसद और पूर्व सीएम बीसी खंडूरी धर्मसंकट में हैं। 36 साल के शानदार फौजी करियर में मेजर जनरल बनकर रिटायर होने वाले खंडूरी की पहचान अपने उसूलों पर डटे रहने वाले शख्स की है, जनरल खंडूरी के नाम से मशहूर भुवन चन्द्र खंडूरी के तेवर सियासत में भी फौजी अफसरों वाले यानि कड़क मिज़ाज प्रशासक की रही है। केंद्र में मंत्री से लेकर राज्य के मुख्यमंत्री तक के सियासी सफर में खंडूरी ने न जाने कितने ही चुनौतियों के चक्रव्यूह को भेदा है लेकिन लगता है कि जनरल खंडूरी इस बार बड़े धर्मसंकट में फंस गए हैं। 2019 की महाभारत में उन्हें पार्टी और पुत्र में से एक का साथ देना है ।अबतक पार्टी के लिए हर लक्ष्य पर अर्जुन की तरह निशाना लगाते आए जनरल इस बार अभिमन्यु की तरह चक्रव्यूह में फंस गए हैं। एक तरफ पिता का धर्म है तो दूसरी तरफ पार्टी के वफादार सिपाही का फर्ज, हमेशा सीधी सपाट राह पर चलने वाला यह भाजपाई जनरल इस जंग में खुद को दोराहे पर खड़ा पा रहा है, एक रास्ता कांग्रेस के हो चुके बेटे को अपनी पौड़ी की पॉलिटिक्स सौप राजनीति में स्थापित करने का है तो दूसरी तरफ उस पार्टी का फर्ज और कर्ज है जिसने उन्हें हर वो सम्मान दिया जिसे पाना कइयों के लिए आज भी सपना है, केंद्र में मंत्री बनाना रहा हो या राज्य में मुख्यमंत्री , बीजेपी ने हमेशा अपने इस जनरल का मान ही बढ़ाया। 2012 में उत्तराखण्ड विधानसभा चुनाव में पार्टी "खंडूरी हैं ज़रूरी " के नारे के साथ रण में उतरी , पार्टी को जीताना तो छोड़िए खुद अपनी सीट पर सीएम रहते जनरल जंग हार गए। पार्टी सत्ता से बेदखल हुई , जनता ने जनरल को गैर जरूरी बताया लेकिन पार्टी ने खंडूरी को ज़रूरी बनाए रखा। 2014 के लोकसभा चुनाव मेंं बीजेपी ने अपने इस जनरल को उसके गढ़ पौड़ी से उतारा , जनता ने भी इस बार खंडूरी को जरूरी बनाकर लोकसभा जिताया लेकिन 2014 से 2019 तक आते आते उम्र के आठ दशक पार चुके इस योद्धा की सेेेहत सियासी महायुद्ध में हिस्सा लेंने से रोक रही थी लिहाजा सत्ता के महासंंग्राम के शंंखनाद से पहले जनरल को जंग न लड़ने का एलान करना पड़ा।
जनरल के एलान से जहां बीजेपी के सामने पौड़ी के कुरुक्षेत्र के लिए नया रणबांकुरा तलाशने की चुनौती थी तो वहीं कांग्रेस ने खंडूरी नाम के सहारे नैया पार लगाने के लिए खंडूरी के बेटे मनीष को कांग्रेसी बना दिया। अब पौड़ी के अखाड़े में कांग्रेस के पहलवान मनीष खंडूरी हैं तो दूसरी ओर बीजेपी के कद्दावर पहलवान और खंडूरी के शागिर्द माने जाने वाले तीरथ सिंह रावत हैं। अब इन दोनो की टक्कर से टेंशन में जनरल खंडूरी हैं , साथ किसका दें पार्टी का या पुत्र का। खंडूरी दोराहे पर खड़े हैं एक रास्ता बेटे की तरफ जाता है क्योंकि बेटी ऋतु पहले ही बीजेपी से विधायक बन सियासत में अपनी जड़े जमा चुकी हैं और अब बेटा अपनी सियासी पारी शुरू कर रहा है, अगर एक पिता के तौर पर 'विजयी भव ' के आशीर्वाद से काम चलाया और रण में साथ न दिया तो पुत्र की पॉलिटिकल पारी का आरंभ से पहले अंत हो जाएगा तो दूसरा रास्ता पार्टी की ओर जाता है , वो पार्टी है जिसने उन्हें सियासत में सिकन्दर बनाया, हर वह सम्मान दिया जिसके वह हकदार थे अगर उस पार्टी का साथ छोड़ा तो उम्र के इस पड़ाव में तकरीबन तीन दशकों में पार्टी के वफादार के तौर पर कमाए मान सम्मान वो गंवा बैठेंगे। हालांकि जनरल कह रहे हैं कि उनके लिए परिवार से बढ़कर पार्टी है और पार्टी चाहे तो वो बेटे के खिलाफ प्रचार के लिए भी तैयार हैं। इस महाभारत में श्रीकृष्ण की भूमिका में खंडूरी हैं उन्हें तय करना है कि सारथी किसका बनना है पुत्र का या पार्टी का। खैर चुनाव में मनीष और तीरथ में से एक का जीतना और एक का हारना तय है लेकिन यह भी तय है कि हारने और जीतने वाला दोनों जनरल का अपना होगा।